Home राजनीति West UP में किसका दिखेगा दम, पहले चरण में दांव पर कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा, भाजपा पर प्रदर्शन दोहराने का दबाव

West UP में किसका दिखेगा दम, पहले चरण में दांव पर कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा, भाजपा पर प्रदर्शन दोहराने का दबाव

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West UP में किसका दिखेगा दम, पहले चरण में दांव पर कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा, भाजपा पर प्रदर्शन दोहराने का दबाव

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और समाजवादी पार्टी के ही बीच माना जा रहा है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों को अपने पक्ष में जरूर किया है। लेकिन भाजपा भी लगातार चुनौती दे रही है।

उत्तर प्रदेश चुनाव में पहले चरण के लिए मतदान की तारीख काफी नजदीक आ चुकी है। 10 फरवरी को 11 जिलों में मतदान होने हैं। पहले चरण में जिन जिलों में मतदान होगा वे सभी प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के हैं। इस चरण में शामली, हापुड़, गौतम बुद्ध नगर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा तथा आगरा जिलों में मतदान होगा। पहले चरण में विधानसभा की 58 सीटों पर महासंग्राम है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में पहले चरण के चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। चुनाव प्रचार में भी हमने आरोप-प्रत्यारोप का आक्रमक दौर भी देखा। विशेषज्ञों की मानें तो इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुकाबला तगड़ा देखने को मिलेगा। 

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और समाजवादी पार्टी के ही बीच माना जा रहा है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों को अपने पक्ष में जरूर किया है। लेकिन भाजपा भी लगातार चुनौती दे रही है। कुछ सीटों पर कांग्रेस और बसपा भी अपना वर्चस्व रखती है और यही कारण है कि भाजपा और समाजवादी पार्टी का गणित भी बिगड़ सकता है। भाजपा जहां 2017 के प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी वही अखिलेश यादव पहले चरण में ही बढ़त के साथ गठबंधन के हक में हवा का दांव लगा सकते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस बार के चुनाव में किसान आंदोलन एक बड़ा मुद्दा है जिससे कि भाजपा को नुकसान हो सकता है। हालांकि समाजवादी पार्टी के टिकट बंटवारे को लेकर भी कई सवाल उठे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कानून व्यवस्था को बड़ा मुद्दा बनाया और दावा किया कि डबल इंजन के सरकार में राज्य में कई विकास के काम हुए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की ओर से लगातार मुजफ्फरनगर दंगे का मुद्दा उठाया गया। वही अखिलेश यादव और जयंत चौधरी लगातार किसानों के हक की बात करते रहे। दोनों नेता विकास और भाईचारे पर ही अपना दांव लगाते दिखाई दे रहे हैं। पहले चरण के चुनाव के लिए प्रचार का ज्यादातर काम कोविड-19 महामारी के मद्देनजर निर्वाचन आयोग द्वारा रैलियों और रोड शो पर प्रतिबंध लगाए जाने कारण डिजिटल माध्यम से ही किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान की अगुवाई करते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश में पार्टी के नेतृत्व वाली सरकारों की उपलब्धियों का जिक्र किया और सपा-रालोद के गठबंधन पर हमला करते हुए लोगों को ‘नकली समाजवादियों’ से सतर्क रहने को कहा। इसके अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2017 से पहले कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा बार-बार उठाया। 

उधर, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान किसानों के मुद्दों को पुरजोर तरीके से उठाया और भाजपा नेताओं पर झूठ बोलने के आरोप लगाए। अपने चुनाव प्रचार अभियान की देर से शुरुआत करने वालीं बसपा अध्यक्ष मायावती ने लोगों को अपनी पिछली सरकार के कार्यकाल में राज्य की कानून व्यवस्था की याद दिलाई और प्रतिद्वंद्वी पार्टियों पर प्रदेश की जनता से ‘छल’ करने का आरोप लगाया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने मतदाताओं के घर घर जाकर वोट मांगे। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित कई दिग्गजों ने चुनाव प्रचार संभाला जबकि अखिलेश यादव और जयंत चौधरी भी लगातार भाजपा के आरोपों का जवाब देते रहे। मायावती थोड़ी बाद में सक्रिय जरूर हुईं जबकि प्रियंका भी उत्तर प्रदेश में जमकर प्रचार कर रही हैं।

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कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर

पहले चरण के चुनाव में भाजपा ने नए प्रत्याशियों पर भी भरोसा जताया है। 14 पुराने विधायकों के टिकट के कट गया है। पहले चरण के चुनाव में कुल 623 उम्मीदवार मैदान में हैं और इस चरण में 2.27 करोड़ मतदाता हैं। पहले चरण का चुनाव जाट बहुल क्षेत्र में होगा। इस चरण में प्रदेश सरकार के मंत्री श्रीकांत शर्मा, सुरेश राणा, संदीप सिंह, कपिल देव अग्रवाल, अतुल गर्ग और चौधरी लक्ष्मी नारायण के राजनीतिक भाग्य का फैसला होगा। वर्ष 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पहले चरण की 58 में से 53 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) को दो-दो सीटें मिली थी। इसके अलावा राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) का भी एक प्रत्याशी जीता था। 

2017 के परिणाम

आगरा के 9 विधानसभा सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। बुलंदशहर के सातों सीट पर भाजपा का कमल खिला था। बागपत में दो पर भाजपा जबकि एक पर राष्ट्रीय लोक दल ने जीत हासिल की थी। हापुड़ में दो पर भाजपा और एक पर बसपा ने जीत हासिल की थी। मुजफ्फरनगर के छह के छह सीटों पर भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की थी। मेरठ में 7 में से 6 सीट भाजपा के खाते में गई थी जबकि एक बार समाजवादी पार्टी का साइकिल चला था। शामली में 2 सीटों पर भाजपा जीत हासिल की थी जबकि एक पर समाजवादी पार्टी को बढ़त हासिल हुई थी। गौतमबुद्ध नगर की तीनों सीटों पर भाजपा का कमल खिला था। गाजियाबाद की भी 5 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। अलीगढ़ में सात के सात सीट भाजपा के खाते में गए थे। जबकि मथुरा में 4 सीट भाजपा को मिले थे और एक बसपा को।

– अंकित सिंह

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