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पैंगोंग लेक से एक बहुत बड़ी खबर सामने आ रही है। डेमियन साइमन एक भौगोलिक इंटेलिजेंस एक्सपर्ट हैं और उन्होंने इस इलाके की सैटेलाइट से खीची गई तस्वीरों को देखकर बताया है कि चीन अपनी सीमा की तरफ ही पैगोंग लेक के सबसे नजदीक इलाकों को जोड़ने के लिए पुल बना रहा है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी) के आस पास चीन की हिमाकत कुछ बढ़ती ही जा रही है। कभी उसके हेलीकॉप्टर आते हैं तो कभी उसके सैनिक पैंगोंग त्सो झील में कारस्तानी कर जाते हैं। लेकिन चीन की इस तरह की हरकतों की कहानी कोई नई बात नहीं बल्कि वर्षों पुरानी है। 1962 से लेकर 2021 तक में कई मौकों पर वो अपनी कारगुजारियों से बाज नहीं आया लेकिन हर बार उसे मुंह की ही खानी पड़ी है। पूर्वी लद्दाख जहां चीन और भारत एलएसी के बहुत करीब दोनों तरफ से नजरें गड़ाए बैठे हैं। पैंगोंग लेक से एक बहुत बड़ी खबर सामने आ रही है। डेमियन साइमन एक भौगोलिक इंटेलिजेंस एक्सपर्ट हैं और उन्होंने इस इलाके की सैटेलाइट से खीची गई तस्वीरों को देखकर बताया है कि चीन अपनी सीमा की तरफ ही पैगोंग लेक के सबसे नजदीक इलाकों को जोड़ने के लिए पुल बना रहा है। इस पुल के तैयार होते ही चीन जब भी जरूरत पड़े तब पैंगोंग लेक के दक्षिणी किनारे पर फौरी तौर पर सैन्य असला तैनात करने में सफल हो जाएगा। ये इलाका 1958 से ही चीन के कब्जे में है। इस पुल के बनने से अब दोनों छोरों के बीच दूरी 200 किमी से घटकर 40-50 किमी हो जाएगी। इससे चीनी सेना एलएसी पर कम से कम समय में पहुंच सकेगी। ऐसे में आइए आज के विश्लेषण में आपको बताते हैं कि भारत और चीन के बीच पैंगोंग लेक पर क्या विवाद है? पैंगोंग त्सो झील का इलाका कौन सा है और इस झील का सामरिक महत्व क्या है।
भारत-चीन सीमा की लंबाई
भारत-चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी भूमि सीमा साझा करता है। ये सीमा जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुज़रती है। चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी के हिस्से पर दावा करता है। इसके अलावा लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है। 1963 में पाकिस्तान ने एक समझौते में पीओके का 5,180 वर्ग किमी चीन को दे दिया था। कुल मिलाकर भारत के 43,180 वर्ग किमी पर चीन का कब्जा है। 1914 में जब भारत में ब्रिटिश शासन था और तिब्बत सरकार के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। ब्रिटिश सरकार के एक प्रशासक सर हेनरी मैकमोहन तिब्बत सरकार के प्रतिनिधि के साथ समझौता करने वाले व्यक्ति थे। जिनके नाम पर तिब्बत और भारत की सीमा को मैकमोहन लाइन का नाम दिया गया। लेकिन चूंकि चीन तिब्बत को स्वायत्त नहीं मानता है, इसलिए उसने तिब्बत सरकार द्वारा हस्ताक्षर किए उस समझौते को भी कभी नहीं माना। चीन ने कहा कि अरुणाचल तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा है। चीन ने कहा था कि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ।
भारत और चीन बॉर्डर
कुल लंबाई | 3488 किमी |
जम्मू कश्मीर | 1597 किमी |
अरुणाचल प्रदेश | 1126 किमी |
सिक्किम | 200 किमी |
उत्तराखंड | 345 किमी |
हिमाचल प्रदेश | 200 किमी |
पैंगोंग त्सो झील के बारे में जानें
पैंगोंग त्सो का अर्थ होता है उच्च घास भूमि पर झील। ये लद्दाख में लभगभ 4350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लैंड लॉक्ड झील है। ये विश्व में सबसे ऊंची खारे पानी की झील है। सर्दी के मौसम में इस झील का पानी जम जाता है। झील का एक तिहाई भाग भारत के पास है और दो तिहाई भाग चीन के नियंत्रण में है। इसके पश्चिमी भाग का 45 किमी क्षेत्र भारत के नियंत्रण में आता है जबकि शेष चीन के नियंत्रण में है। एलएसी रेखा झील के मध्य से होकर गुजरती है। दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में एलएसी के सटीक लोकेशन पर सहमत नहीं हुए हैं।
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झील का सामरिक महत्व
पैंगोंग त्सो झील चुशूल घाटी के रास्ते में आती है। चुशूल केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लेह जिले का एक गांव है,जो चुशूल घाटी में स्थित है। चीन चुशूल का प्रयोग भारत अधिकृत क्षेत्र में घुसने या आक्रमण के लिए कर सकता है। 1962 के युद्ध में चीन ने चुशूल में बड़ा आक्रमण किया था। भारतीय सेना ने चुशूल घाटी के रेजांग ला से वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा था। रेजांग ला कुमाऊं रेजीमेंट के 13 कुमाऊं दस्ते का अंतिम मोर्चा था, जिसका नेतृत्व मेजर शैतान सिंह ने किया था और शहीद हो गए थे। रेजांग ला चुशूल घाटी के दक्षिण-पूर्व छोर पर स्थित एक दर्रा है।
भारत चीन के बीच एलएसी विवाद
लद्दाख में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी है। ये एलएसी पैंगोंग झील से होकर गुजरती है। पैंगोंग त्सो लेक की लंबाई 135 किलोमीटर है। बेहद सुंदर ये झील पर्यटकों के बीच बेहद आकर्षक का केन्द्र है। थ्री-ईडि़यट्स फिल्म के क्लाईमेक्स को यहां फिल्माए जाने से ये और भी पॉपुलर हुई है। 135 किलोमीटर लंबी इस झील का दो-तिहाई हिस्सा चीन के पास है और एक-तिहाई यानि 30-40 किलोमीटर भारत के पास है। तिब्बत की राजधानी, ल्हासा यहां से करीब डेढ़ हजार किलोमीटर की दूरी पर है तो चीन की राजधानी तीन हजार छह सौ किलोमीटर। भारत और चीन के बीच मई-जून महीने में हुए झड़प झील के उत्तरी इलाके में हुआ। पेंगोंग लेक से सटी आठ पहाड़ियां हाथ की उंगलियों के आकार की हैं, इसलिए इन पहाड़ियों को ‘फिंगर एरिया’ कहा जाता है। एक से लेकर चार नंबर तक की फिंगर पर भारत का अधिकार है जबकि पांच से आठ पर चीन का कब्जा है। मई में जब चीन फिंगर फोर की तरफ आ गया तो यहीं से झगड़ा शुरू हुआ। ये तो पेंगोंग झील के उत्तर के झगड़े की बात हुई लेकिन झील के दक्षिण इलाके में भी कुछ हो रहा था। पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे के पास ही चुशूल है। वहीं से थोड़ी दूर पर रेजांग ला (पास) है। भारतीय सेना के बयान के अनुसार, पैंगोंग त्सो एरिया में 29/30 अगस्त की दरम्यानी रात को पीएलए के सैन्य दलों ने उस सहमति का उल्लंघन किया जो पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव के दौरान सैन्य एवं कूटनीतिक बातचीत के दौरान बनी थी। सेना अलर्ट पर थी इसलिए चीन की ये कोशिश कामयाब नहीं हो पाई। जिसके बाद चीन तो जैसे बौखला सा गया कई बयान भी दिए कि भारत तो हमारे इलाके में घुस गया, पहले की सहमतियों और करार भी तोड़ दिया गया। भारतीय सेना ने रणनीतिक इतिहास से सबसे अहम ऊंची चोटियां अपने कब्जे में ले ली हैं। ये सब हुआ चुशूल सेक्टर में जहां रेजांग ला, रेजिंग ला और ब्लैक टॉप है।
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भारत चीन के अवैध कब्जे को नहीं मानता
चीन जिस क्षेत्र में पुल बना रहा है, वहां उसने 1960 के करीब से कब्जा किया हुआ है। भारत सरकार ने कहा है कि चीन कहां पुल बना रहा है, वह साल 1960 से उसके अवैध कब्जे में है। विदेश मंत्रालय ने हाल ही में कहा था कि जैसा कि आप भलीभांति जानते हैं कि भारत ने इस अवैध कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन दूर की सोच रहा है और नए निर्माण से ये पक्का कर लेना चाह रहा है कि पैंगोंग के दक्षिणी किनारे पर भारतीय सेना का मुकाबला करने के लिए एक से ज्यादा रास्तों को विकल्प उसके पास मौजूद हो। इसके साथ-साथ उसने हेलीपोर्ट, मिसाइल साइटों और सैनिकों के रहने की जगह भी बनाई है।
भारत ने भी की पूरी तैयारी
चीन की तरह भारत ने भी पूर्वी लद्दाख के सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इलाकों में नई सड़कें, सुरंगें और अंडरग्राउंड हथियार बनाए हैं। इसके साथ ही भारत ने युद्ध की स्थिति में इस्तेमाल के लिए नए उपकरण भी तैनात किए हैं। बता दें कि चीन ने कई बार भारत द्वारा एलएसी में अपने तरफ किए गए निर्माण का जबरदस्त विरोध किया है और तोड़फोड़ की हरकत भी की है। लेकिन एलएसी के अपनी तरफ उसे निर्माण करने में कुछ भी गलत नहीं दिखाई देता है। ये दोहरा मापदंड अंतरराष्ट्रीय कायदे कानून से मेल नहीं खाता है। साल 2020 के बाद से दोनों देशों ने 50-50 हजार से ज्यादा सैनिक उत्तर में देपसांग से लेकर दक्षिण में डेमचौक तक बर्फीली पहाड़ों पर तैनात कर रखें हैं। पूर्वी लद्दाख में कम से कम 12 जगहों पर दोनों देशों के बीच विवाद होने की बात कही जाती है।
-अभिनय आकाश
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