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देश की रक्षा एजेंसियों, विशेष रूप से डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन), द्वारा भारत को रक्षा उपकरणों के निर्यातक देशों की श्रेणी में ऊपर लाने की लगातार कोशिश की जा रही हैं एवं अब इसके सुखद परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं।
अब भारत के लिए यह बीते कल की बात है कि जब रक्षा क्षेत्र में उपयोग होने वाले लगभग समस्त उत्पादों, हथियारों एवं उपकरणों का भारी मात्रा में आयात किया जाता था एवं भारत पूरे विश्व में रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक देश था। आज, भारत में वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट में यह व्यवस्था की गई है कि रक्षा बजट पर खर्च की जाने वाली कुल राशि का 68 प्रतिशत भाग देश में ही उत्पादित रक्षा उपकरणों पर खर्च किया जाएगा एवं शेष केवल 32 प्रतिशत राशि ही इन उत्पादों के आयात पर खर्च की जाएगी। इससे न केवल रक्षा उपकरणों के आयात में भारी कमी दृष्टिगोचर होगी बल्कि भारत से रक्षा उपकरणों का निर्यात भी तेज गति से आगे बढ़ेगा। आज भारत से 84 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात किया जा रहा है। इस सूची में कतर, लेबनान, इराक, इक्वाडोर और जापान जैसे देश भी शामिल हैं जिन्हें भारत बॉडी प्रोटेक्टिंग उपकरण, आदि निर्यात कर रहा है।
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आज देश की कई सरकारी एवं निजी क्षेत्र की कंपनियां विश्व स्तर के रक्षा उपकरण बना रही हैं एवं उनके लिए विदेशी बाजारों के दरवाजे खोले दिए गए हैं। इस कड़ी में 30 दिसम्बर 2020 को आत्म निर्भर भारत योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने स्वदेशी मिसाइल आकाश के निर्यात को अपनी मंजूरी प्रदान की थी। आकाश मिसाइल भारत की पहचान है एवं यह एक स्वदेशी (96 प्रतिशत) मिसाइल है। आकाश मिसाइल सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल है। आकाश मिसाइलें 25 किलोमीटर की सीमा में आने वाले दुश्मन के किसी भी विमान या ड्रोन को नष्ट कर सकती हैं। सीमा के आसपास के क्षेत्र में इसकी खासी उपयोगिता है। इस मिसाइल को 2014 में भारतीय वायु सेना ने बनाया था और 2015 में इसे भारतीय सेना में शामिल किया गया था। दक्षिणपूर्व एशियाई देश वियतनाम, इंडोनेशिया, और फिलिपींस के अलावा बहरीन, केन्या, सउदी अरब, मिस्र, अल्जीरिया और संयुक्त अरब अमीरात ने आकाश मिसाइल को खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है। आकाश मिसाइल के साथ ही कई अन्य देशों ने तटीय निगरानी प्रणाली, राडार और एयर प्लेटफार्मों को खरीदने में भी अपनी रुचि दिखाई है।
देश की रक्षा एजेंसियों, विशेष रूप से डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन), द्वारा भारत को रक्षा उपकरणों के निर्यातक देशों की श्रेणी में ऊपर लाने की लगातार कोशिश की जा रही हैं एवं अब इसके सुखद परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। भारत जल्द ही दुनिया के कई देशों यथा फिलीपींस, वियतनाम एवं इंडोनेशिया आदि को ब्रह्मोस मिसाइल भी निर्यात करने की तैयारी कर रहा है। कुछ अन्य देशों जैसे सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात एवं दक्षिण अफ्रीका आदि ने भी भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है। ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना तेज, माक 3 की गति से चलने वाली और 290 किलोमीटर की रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइलें भारत-रूस सैन्य सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। दोनों देशों के बीच इसे मिलकर बनाने पर 1998 में सहमति हुई थी। ब्रह्मोस मिसाइल का नाम ब्रह्मपुत्र और मस्क्वा नदियों के नामों को मिलाकर रखा गया है। जमीन, आकाश और समुद्र स्थित किसी भी लांच उपकरण से छोड़े जा सकने वाले ब्रह्मोस की खूबी यह है कि यह अपनी तरह का अकेला क्रूज मिसाइल है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार भारत दुनिया में रक्षा उपकरणों के सबसे बड़े आयातक देशों की सूची में लगातार उच्च स्तर पर बना हुआ है एवं इस मामले में विश्व में भारत का स्थान सऊदी अरब के पश्चात दूसरा है। परंतु हर्ष का विषय भी है कि अब भारत रक्षा उपकरणों के निर्यात के मामले में दुनिया के शीर्ष 25 देशों की सूची में शामिल हो गया है। वर्ष 2019 में रक्षा उपकरणों के निर्यात के मामले में पूरे विश्व में भारत का स्थान 19वां था। 1990 के दशक में जहां भारत हथियारों का पता लगाने वाले राडार को अमेरिका और इजराइल से पाने के लिए संघर्ष कर रहा था। वहीं, हाल ही में भारत ने यही राडार आर्मेनिया को बेचने में सफलता प्राप्त की है। भारत के रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी जानकारी के अनुसार भारत ने वित्तीय वर्ष 2017 में 1521 करोड़ रुपए के रक्षा उपकरणों का निर्यात किया था जो वित्तीय वर्ष 2018 में 4682 करोड़ रुपए का रहा और वित्तीय वर्ष 2019 में बढ़कर 10,745 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया था। कुल मिलाकर पिछले 7 वर्षों के दौरान भारत ने 38,000 करोड़ रुपए के रक्षा उपकरणों का निर्यात 84 से अधिक देशों को किया है एवं भारत रक्षा उपकरणों का शुद्ध निर्यातक देश बन जाने की राह पर अग्रसर हो चुका है। इस प्रकार अब भारत से रक्षा उपकरणों के निर्यात को बढ़ावा दिया जा रहा है एवं देश से रक्षा उपकरणों के निर्यात को बढ़ावा देने और भारत को वैश्विक रक्षा आपूर्ति चेन का हिस्सा बनाने के उद्देश्य से वित्तीय वर्ष 2024-25 तक एयरोस्पेस, रक्षा सामान और सेवाओं में 35,000 करोड़ रुपये के निर्यात का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
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भारत से रक्षा उपकरणों के निर्यात को बढ़ाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने हाल ही में कई कदम उठाए है जैसे केंद्र सरकार ने अगस्त-2020 में आत्मनिर्भर भारत योजना के अंतर्गत 101 रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगा दी थी। साथ ही, केंद्र सरकार ने 209 रक्षा उपकरणों को शामिल करते हुए एक सूची भी बनाई है जिसके अनुसार एक निर्धारित समय सीमा के पश्चात इन उपकरणों का आयात देश में नहीं किया जा सकेगा। बाद में भी, समय समय पर, अन्य कई रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगाई है एवं इनका निर्माण भारत में ही किया जाना सुनिश्चित किया जा रहा है। इसके बाद से केंद्र सरकार ने रक्षा उपकरणों के भारत में ही निर्माण के लिए 460 से अधिक लाइसेंस जारी किए हैं। रक्षा उपकरणों का उत्पादन करने वाली कम्पनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया गया है। सरकारी रक्षा कंपनियों को वित्तीय वर्ष 2023 तक अपने कुल राजस्व का 25 प्रतिशत हिस्सा, निर्यात के माध्यम से प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। विभिन्न देशों में स्थित भारतीय दूतावासों एवं वाणिज्य दूतावासों को निर्देश जारी किए गए हैं कि वे भारत में निर्मित रक्षा उपकरणों का निर्यात करने के उद्देश्य से आक्रामक ढंग से विपणन करने के प्रयास इन देशों में करें। भारत से रक्षा उत्पाद खरीदने वाले देशों को कर्ज देने की सुविधा भी भारत द्वारा प्रदान की जाती है।
भारतीय रक्षा उपकरण उत्पादक कंपनियों द्वारा नौसैनिक जहाजों का निर्माण भारत में ही करना एक बड़ी कामयाबी रही है। इस क्षेत्र में कुछ कंपनियों द्वारा सस्ती गश्ती नौकाएं बनाकर भारत के मित्र देशों को बेची गई हैं। इसी प्रकार हवाई रक्षा क्षेत्र में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने ध्रुव के तौर पर उच्च स्तरीय हल्का हेलिकॉप्टर का निर्माण भी सफलतापूर्वक किया है। अब तो धीरे धीरे सरकारी एवं निजी क्षेत्र में कई रक्षा उपकरण उत्पादक कंपनियां अपने नए उत्पादों के साथ दुनिया के अन्य देशों से मुकाबला करने की स्थिति में आ रही हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 के रक्षा बजट में यह व्यवस्था की गई है कि शोध एवं अनुसंधान पर खर्च की जाने वाली कुल राशि का 25 प्रतिशत भाग निजी उद्योगों एवं स्टार्ट-अप को उपलब्ध कराया जाएगा। साथ ही, रक्षा सेवाओं के आधुनिकीकरण के लिए 12 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 1.52 लाख करोड़ रुपए की राशि निर्धारित की गई है।
सेना पर खर्च करने वाले देशों की सूची में भारत अमेरिका, चीन, रूस और सउदी अरब के बाद पांचवें नंबर पर आता है। इस दृष्टि से भारत में सैन्य साजो सामान की खरीद एवं इसके रख रखाव पर भारी राशि खर्च की जाती है। चीन का वर्ष 2020 का रक्षा बजट 12.50 लाख करोड़ रुपए का था जो भारत के रक्षा बजट से लगभग तीन गुना अधिक है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के रक्षा बजट में भारत ने 47,000 करोड़ रुपए की वृद्धि करते हुए इसे 5.25 लाख करोड़ रुपए का कर दिया है। परंतु अब भारत के रक्षा क्षेत्र में निजी निवेश को भी बढ़ाए जाने की महती आवश्यकता है। अतः अब समय आ गया है कि देश के निजी क्षेत्र को भी रक्षा उपकरणों के निर्माण एवं निर्यात में योगदान बढ़ाने हेतु प्रेरित किया जाय। इसलिए केंद्र सरकार अब इस ओर लगातार विशेष ध्यान दे रही है। अन्य देशों में भी रक्षा उपकरणों का निर्माण निजी क्षेत्र में ही किया जाता है। इसलिए अब मिलिट्री प्लेटफार्म और उपकरणों का विकास और निर्माण भारत में ही किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही, रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया अभियान के तहत घरेलू उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है। घरेलू निर्माण पर निर्भरता बढ़ाई जा रही है एवं रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भरता कम की जा रही है। इससे हमारे देश में ही रोजगार के नए अवसर भारी संख्या में निर्मित होंगे।
– प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी, झांसी रोड, लश्कर, ग्वालियर- 474 009
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