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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सभी जनमत सर्वेक्षण जारी कर दिए गए हैं और अब हम 7 मार्च, 2022 को अंतिम चरण के मतदान के बाद एक्जिट पोल की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हालांकि, पंजाब में कांग्रेस के लिए आत्मनिरीक्षण करने के लिए बहुत कुछ है, विशेष रूप से कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेस्वाद इस्तीफे से उत्पन्न अंदरूनी कलह पर। कैप्टन अमरिंदर जिस तरह से खुद को अपदस्थ और निर्वासित कह रहे हैं, वह कांग्रेस को बहुत महंगा पड़ सकता है। अगर 10 मार्च के नतीजे बताएं कि कांग्रेस ने पंजाब खो दिया है, तो किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए।
यूं तो कोई भी पूवार्नुमान हमेशा सटीक नहीं होता, लेकिन विभिन्न एजेंसियों द्वारा किए गए ढेर सारे मत सर्वेक्षण पंजाब में कांग्रेस की हार की ओर इशारा करते हैं। पंजाब कांग्रेस के राज्य प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू, जिन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह को पछाड़ने के लिए कांग्रेस रैंक और फाइल के भीतर महत्वपूर्ण लड़ाई शुरू की, अब उन्हें सत्ता समीकरण से पूरी तरह बाहर माना जाता है।
मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी को शुरू में एक भरपाई व्यवस्था के रूप में शामिल किया गया और बाद में उन्हें चुनावों के लिए कांग्रेस के आधिकारिक सीएम उम्मीदवार के रूप में घोषित किया गया। उनकी किस्मत अब दांव पर है। लोग कहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व ने शुरुआत में सिद्धू का पक्ष लेकर गलती की।
पिछले महीने सीवोटर-आईएएनएस ट्रैकर में उत्तरदाताओं से सीधा सवाल पूछा गया था, बेहतर नेता कौन है, कैप्टन अमरिंदर सिंह या वह व्यक्ति जिसने कैप्टन के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया यानी नवजोत सिंह सिद्धू कुल मिलाकर पंजाब के 37.1 प्रतिशत मतदाताओं ने अमरिंदर सिंह को पसंद किया, जबकि सिद्धू को चुनने वाले 26.7 प्रतिशत थे। हिंदू समुदाय में वरीयता का अंतर विशेष रूप से व्यापक था, जिसमें 48.8 प्रतिशत अमरिंदर सिंह को पसंद करते थे, जबकि केवल 17.5 प्रतिशत ने सिद्धू को चुना।
जाट और दलित सिख वोट के बारे में तमाम चर्चाओं में विश्लेषक अक्सर यह भूल जाते हैं कि 2011 की जनगणना के अनुसार, पंजाब की आबादी में हिंदुओं की संख्या 38 प्रतिशत से अधिक है। इसका असर कांग्रेस समर्थकों पर भी देखने को मिल रहा है। पारंपरिक कांग्रेस मतदाताओं में से 35 प्रतिशत ने कहा कि अमरिंदर सिंह पार्टी से बाहर निकलने के बाद भी एक बेहतर नेता हैं, जबकि केवल 23 प्रतिशत ने कहा कि सिद्धू बेहतर नेता हैं।
हिंदू मतदाताओं के साथ कैप्टन का समीकरण 2014 के लोकसभा चुनावों से प्रमाणित होता है, जहां नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद कैप्टन ने अमृतसर में दिवंगत अरुण जेटली को बड़े अंतर से हराया, जहां एक महत्वपूर्ण हिंदू आबादी है। यह व्यापक रूप से ज्ञात तथ्य है कि पंजाब में हिंदू मतदाताओं के देर से स्विंग ने पांच साल पहले परिणाम कांग्रेस के पक्ष में झुका दिया था। सिद्धू की अलोकप्रियता और कैप्टन के भाजपा खेमे की ओर बढ़ने के कारण कांग्रेस खेमे के लिए समस्याएं कई गुना हो सकती हैं।
(आईएएनएस)
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