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देश के महान स्वतंत्रता सेनानी, पराक्रमी युग पुरुष नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती से पहले सरकार ने बड़ा ऐलान किया है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन (23 जनवरी) को ‘पराक्रम दिवस’ के तौर पर मनाने का फैसला किया है।
सुभाष चंद्र बोस को “नेता जी” कहा जाता है। नेता का शाब्दिक अर्थ होता है नेतृत्व करने वाला अर्थात अगुआ या अगुआई करने वाला। यह उपाधि, भारत में सिर्फ सुभाष चंद्र बोस को ही मिली है। जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने ही सुभाष चंद्र बोस को पहली बार ‘नेताजी’ कहकर बुलाया था। सत्र 2021 में भारतीय स्वतंत्रता के प्रमुख सेनानी नेता जी सुभाषचन्द्र बोस की 125 वीं जयंती है। भारत में प्रत्येक वर्ष के 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस की जयंती बड़े ही धूम धाम से मनाई जाती है। सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा प्रांत में कटक में हुआ था। उनके पिता जानकी दास बोस एक प्रसिद्ध वकील थे। प्रारम्भिक शिक्षा कटक में प्राप्त करने के बाद यह कलकता में उच्च शिक्षा के लिये गये। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद शिक्षण संस्थान से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। सुभाष चन्द्र बोस भारतीय इतिहास के ऐसे युग पुरुष हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई को एक नया मोड़ दिया था। भारत को आजाद कराने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अहम भूमिका थी। नेता जी सुभाष चंद्र बोस, भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है जिसकी तुलना विश्व में किसी से नहीं की जा सकती। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को तेज करने के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना की गई थी। आजाद हिंद फौज की स्थापना टोक्यो (जापान) में 1942 ई. में रास बिहारी बोस ने की थी। इसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध (1 सितम्बर 1939 – 2 सितम्बर 1945) के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था। आजाद हिंद फौज का जापान ने काफी सहयोग दिया था। देश के बाहर रह रहे लोग आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गए। सुभाष चंद्र बोस के रेडियो पर किए गए एक आह्वान के बाद रास बिहारी बोस ने 4 जुलाई 1943 को 46 वर्षीय सुभाष को इसका नेतृत्व सौंप दिया। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की। नेताजी ने ये घोषणा सिंगापुर के कैथे सिनेमा हाल में की थी। स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की ऐतिहासिक घोषणा सुनने के लिए इस सिनेमा हाल में लोग खचाखच इकट्ठे थे। सुभाष चंद्र बोस इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष तीनों थे। इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी थी।
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आजाद हिन्द फ़ौज के संरक्षक के रूप में क्रमशः मोहन सिंह – रास बिहारी बोस – सुभाष चंद्र बोस थे। कहने का तात्पर्य आजाद हिंद फौज की स्थापना का विचार सबसे पहले जनरल मोहन सिंह के मन में आया था। रास बिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज को जिन्दा रखा और सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का पुनर्गठन और नेतृत्व किया। 21 मार्च 1944 ई. को ‘चलो दिल्ली’ के नारे के साथ आजाद हिंद फौज का हिन्दुस्तान की धरती पर आगमन हुआ। आजाद हिंद फौज एक ‘आजाद हिंद रेडियो’ का इस्तेमाल करती थी, जो लोगों को आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित करती थी। इस पर अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, बंगाली, पंजाबी, पाष्तू और उर्दू में खबरों का प्रसारण होता था। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। महात्मा गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने ही पहली बार राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। जिस प्रकार नेता जी ने पराक्रम और वीरता के साथ अंग्रेजों से भारत को आजाद कराया तो वहीँ नेता जी ने अपने जीवन में प्रेम कहानी को भी बड़े ही धैर्य और साहस के साथ निभाया। 26 जनवरी, 1910 को ऑस्ट्रिया के एक कैथोलिक परिवार में जन्मी एमिली के पिता को ये पसंद नहीं था कि उनकी बेटी किसी भारतीय के यहां काम करे लेकिन जब वे लोग सुभाष चंद्र बोस से मिले तो उनके व्यक्तित्व के कायल हुए बिना नहीं रह पाए। जाने माने अकादमिक विद्वान रुद्रांशु मुखर्जी ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है- “नेहरू एंड बोस, पैरलल लाइव्स”। इस पुस्तक में एक चैप्टर है, ‘टू वूमेन एंड टू बुक्स’। इसमें सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू के जीवन पर उनकी पत्नियों की भूमिका को रेखांकित किया गया है। इस पुस्तक के कुछ अंश इस प्रकार हैं- “सुभाष और एमिली ने शुरूआत से ही स्वीकर कर लिया था कि उनका रिश्ता बेहद अलग और मुश्किल रहने वाला है। एक-दूसरे को लिखे खतों में दोनों ने एक दूसरे के लिए जिस संबोधन का इस्तेमाल किया हैं, उससे ये ज़ाहिर होता है की एमिली उन्हें मिस्टर बोस लिखती हैं, जबकि बोस उन्हें मिस शेंकल या पर्ल शेंकल”। ये हक़ीक़त है कि पहचान छुपा कर रहने की बाध्यता और सैनिक संघर्ष में यूरोपीय देशों से मदद मांगने के लिए भागदौड़ करने के चलते सुभाष अपने प्यार भरे रिश्ते लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतते होंगे। लेकिन एमिली को लेकर उनके अंदर कैसा भाव था, इसे उस पत्र से समझा जा सकता है, जिसे आप सुभाष चंद्र बोस का लिखा लव लेटर कह सकते हैं। इस पत्र को एमिली ने खुद सुभाष चन्द्र बोस के बड़े भाई- शरत चंद्र बोस के बेटे शिशिर कुमार बोस की पत्नी कृष्णा बोस को सौंपा था। 5 मार्च,1936 को लिखा ये पत्र इस तरह से शुरू होता है- “माय डार्लिंग, समय आने पर हिम पर्वत भी पिघलता है, ऐसा भाव मेरे अंदर अभी है। मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूं, ये बताने के लिए कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। जैसा कि हम एक-दूसरे को आपस में कहते हैं, माय डार्लिंग, तुम मेरे दिल की रानी हो। लेकिन क्या तुम मुझसे प्यार करती हो।” इसमें बोस ने आगे लिखा है, “मुझे नहीं मालूम कि भविष्य में क्या होगा। हो सकता है पूरा जीवन जेल में बिताना पड़े, मुझे गोली मार दी जाए या मुझे फांसी पर लटका दिया जाए। हो सकता है मैं तुम्हें कभी देख नहीं पाऊं, हो सकता है कि कभी पत्र नहीं लिख पाऊं- लेकिन भरोसा करो, तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी, मेरी सोच और मेरे सपनों में रहोगी। अगर हम इस जीवन में नहीं मिले तो अगले जीवन में मैं तुम्हारे साथ रहूंगा। इस पत्र के अंत में सुभाष ने लिखा है कि मैं तुम्हारे अंदर की औरत को प्यार करता हूं। तुम्हारी आत्मा से प्यार करता हूं। तुम पहली औरत हो जिससे मैंने प्यार किया। पत्र के अंत में सुभाष ने इस पत्र को नष्ट करने का अनुरोध भी किया था। लेकिन एमिली ने इस पत्र को संभाल कर रखा।
सुभाष चंद्र बोस के प्रेम पत्र से साबित होता है कि सुभाष पराक्रम, शौर्य और वीरता के साथ साथ धैर्य और साहस भी रखते थे। अभी तक सुभाष चंद्र बोस (नेता जी) की मृत्यु का सही कारण पता नहीं लग पाया। मृत्यु का सही कारण पता लगाने के लिए भारत की सरकारें मुखर्जी आयोग से पूर्व दो जांच आयोग गठित कर चुकी हैं। सबसे पहले शाहनवाज कमेटी बनाई गई जबकि उसके बाद खोसला आयोग का गठन किया गया। शाहनवाज कमेटी नेता जी की मौत का सही पता न लगा सकी। खोसला आयोग ने कई दस्तावेजों के आधार पर कहा था कि सुभाष चंद्र बोस (नेता जी) की मृत्यु के होने का कोई उचित साक्ष्य नहीं है।
के.जी.बी. से जुड़े दो जासूसों ने 1973 में वॉशिंगटन पोस्ट को बिना अपना नाम बताए कहा था कि जापान के टैनकोजी मंदिर में रखी हुई अस्थियां नेता जी की नहीं हैं। नेता जी के भतीजे अमियनाथ ने खोसला आयोग को बताया था कि एक बार उन्हें ब्रिटिश अधिकारी ने फोन पर जानकारी दी थी कि 1947 में नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ रूसी अधिकारियों ने गलत और अपकृत्य व्यवहार किया था। सुभाषचंद्र बोस के भाई शरत चंद्र बोस ने 1949 में कहा था कि सोवियत संघ में नेता जी को साइबेरिया कि जेल में रखा गया था तथा 1947 में स्टालिन ने नेता जी को फांसी पर चढ़ा दिया था। सुभाष चंद्र बोस के साथ विमान में यात्रा करने वाले कर्नल हबीब रहमान ने मृत्यु के कुछ दिन पूर्व यह स्वीकार किया था कि ताईवान में कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी। देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहा कि वह नेताजी (सुभाष चंद्र बोस) की मृत्यु के कारणों का सही पता न लगा पाई। आयोग की जांच व पूर्ववर्ती सरकारों की निष्क्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है।
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देश के महान स्वतंत्रता सेनानी, पराक्रमी युग पुरुष नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती से पहले सरकार ने बड़ा ऐलान किया है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन (23 जनवरी) को ‘पराक्रम दिवस’ के तौर पर मनाने का फैसला किया है। पराक्रम दिवस की शुरुआत इस साल सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती 23 जनवरी को उनके जन्मदिन से होगी। भारत सरकार ने इसके लिए एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। भारत सरकार का यह निर्णय, युवाओं के लिए राष्ट्र प्रेम के प्रति प्रेरणादाई साबित होगा। सफल जीवन के चार सूत्र हैं- जिज्ञासा, धैर्य, नेतृत्व की क्षमता और एकाग्रता। जिज्ञासा का मतलब जानने की इक्षा। धैर्य का मतलब विषम परिस्थितयों में अपने को सम्हाले रहना। नेतृत्व की क्षमता का मतलब जनसमूह को अपने कार्यों से आकर्षित करना। एकाग्रता (एक+अग्रता) का अर्थ है एक ही चीज पर ध्यान केन्द्रित करना। सुभाष चंद्र बोस के जीवन में ये चारों सूत्र चरितार्थ होते थे।
अतएव हम कह सकते हैं कि भारत को पूर्ण रूप से आजादी दिलाने में नेता जी द्वारा किया गया संघर्ष वैश्विक पराक्रम का द्योतक है और नेता जी वैश्विक पराक्रम के युग पुरुष हैं।
डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक
सहायक प्रोफेसर,शुएट्स, नैनी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
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