Home राजनीति गोवा में गुमनाम हैं इतिहास के कई पन्ने, जहां से शुरु हुई भारत के उपनिवेश बनने की कहानी

गोवा में गुमनाम हैं इतिहास के कई पन्ने, जहां से शुरु हुई भारत के उपनिवेश बनने की कहानी

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गोवा में गुमनाम हैं इतिहास के कई पन्ने, जहां से शुरु हुई भारत के उपनिवेश बनने की कहानी

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बात जब गोवा की और इसके इतिहास की होती है पुर्तगालियों ने 1510 से शासन करना शुरू कर दिया और इसके 451 सालों बाद 19 दिसंबर 1961 को गोवा को आज़ादी मिली पर आकर खत्म हो जाती। लेकिन इससे इतर अगर इतिहास के पन्नों को गौर से पढ़ने की कोशिश करेंगे तो गोवा के अतीत में कई गुमनाम पन्ने हैं।

मस्ती का प्रदेश गोवा, हरा भरा प्राकृतिक स्वर्ग है। समुद्र की अठखेलियों का घर है गोवा, जब भी गोवा का नाम जेहन में आता है तब दिमाग में नीले पानी से घिरी एक छोटी-सी जमीन की तस्वीर उतर आती है। गोवा अपने मनमोहक समुद्र तटों के लिए दुनियाभर में मशहूर है। चमकती रेत, आसमान छूते नारियल के पेड़, बड़ी-बड़ी समुद्री लहरें और शानदार सी-फूड यहां की पहचान को खास बना देती है। इन सब के अलावा गोवा में और भी बहुत कुछ है, जो आपको यहां की असली खूबसूरती से रू-ब-रू करवाएगा। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, बेजोड़ वास्तु शिल्प को दिखाते मंदिर व यहां के त्योहार, ये सब गोवा की विरासत को गौरवपूर्ण बनाता है। दरअसल, यहीं बसता है असली गोवा। गोवा के इस मिजाज को समझते हुए ट्रैवलर्स ने अंग्रेजी में एक मशहूर लाइन कही है- When life hits you with boredom, Escape to Goa यानी जब जिंदगी आपको बोरियत से भर दे, तो गोवा की ओर कदम बढ़ाएं। यहां कि अर्थव्यवस्था भी काफी हद तक पर्यटन पर आश्रित है। लॉकडाउन से पहले यहां पर्यटकों की भीड़ पूरे साल होती थी। लेकिन महामारी के बाद लॉकडाउन ने राज्य के पर्यटन उद्योग पर गहरा संकट छा गया। पहले कोरोना महामारी और फिर इसके दूसरे वेरिएंट ओमिक्रॉन की वजह से डरे पर्यटक गोवा की ओर रूख नहीं कर रहे हैं। जिसकी वजह से यहां के कारोबार पर भी असर पड़ रहा है। 

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साल 2022 का आगाज हो चुका है और इसके साथ ही कोरोना के मामलों में कमी के साथ फिर से पर्यटन और कारोबार के रफ्तार पकड़ने की चर्चाएं भी तेज हैं। इसके साथ ही तेज हैं एक और चर्चाएं जो भारत के हर राज्य, हर जिले और हर गली नुक्कड़ पर चाय की चुस्की के साथ अपनी पहचान को समेटे है। चर्चा राजनीति की, चर्चा चुनावी चक्कलस की जो अभी देशभर में पूरे शबाब पर है। हो भी क्यों न भला क्योंकि देश के पांच राज्यों में चुनाव जो होने हैं और इसके पहले पड़ाव की शुरुआत देश के सबसे बड़े प्रदेश चाहे वो आबादी या फिर राजनीतिक लिहाजे से अहम माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से हो चुकी है। वहीं 14 फरवरी को गोवा में भी वोट डाले जाएंगे। बात जब गोवा की और इसके इतिहास की होती है गोवा में पुर्तगालियों ने 1510 से शासन करना शुरू कर दिया और इसके 451 सालों बाद 19 दिसंबर 1961 को गोवा को आज़ादी मिली पर आकर खत्म हो जाती है। लेकिन इससे इतर अगर इतिहास के पन्नों को गौर से पढ़ने की कोशिश करेंगे तो गोवा के अतीत में कई गुमनाम पन्ने हैं।  भारत के उपनिवेश बनने की कहानी छिपी है। 

शुरुआत गोवा के इतिहास से करते हैं-

महाभारत में गोवा का उल्लेख गोपराष्ट्र यानि गोपालकों के देश के रूप में मिलता है। गोवा के लंबे इतिहास की शुरुआत् तीसरी सदी इसा पूर्व से शुरू होता है जब यहाँ मौर्य वंश के शासन की स्थापना हुई थी। बाद में पहली सदी के शुरुआत में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इस पर वर्ष 580 से 750 तक राज किया। 

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गोवा के लिए 1312 ईं से ही लड़ाईयां लड़ी जा रही 

भारत का सबसे छोटा राज्य गोवा लगभग 3702 वर्ग किलोमीटर में फैला है। दक्षिणी मुंबई से महज 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति इस राज्य को लेकर 1312 ईं से ही लड़ाईयां लड़ी जा रही हैं। गोवा के लंबे इतिहास की शुरुआत तीसरी सदी इसा पूर्व से शुरु होती है, जब यहां मौर्य वंश के शासन की स्थापना हुई थी। बाद में पहली सदी के शुरुआत में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इसपर 580 इसवी से 750 इसवी पर राज किया। इसके बाद के सालों में इस पर कई अलग अलग शासकों ने अधिकार किया। 1312 ईं में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ लेकिन उन्हें विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम द्वारा वहां से खदेड़ दिया गया। अगले सौ सालों तक विजयनगर के शासकों ने यहां शासन किया और 1469 में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान द्वारा फिर से दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया गया। बहामी शासकों के पतन के बाद बीजापुर के आदिल शाह का यहाँ कब्जा हुआ जिसने गोअ-वेल्हा हो अपनी दूसरी राजधानी बनाई।

पुर्तगाली कंपनी का भारत में प्रवेश

यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली कंपनी भारत में सबसे पहले प्रवेश किया। भारत के लिये नए समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली व्यापारी चारकोडिगामा ने 17 मई, 1498 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहु्ंचकर की। उसके इस सफल अभियान ने युरोप की अन्य शक्तियों को भारत पहुंचने के लिये दूसरे समुद्री रास्तों की तलाश के लिये प्रेरित किया क्योंकि तुर्कों द्वारा पारंपरिक स्थल मार्गों को बंद कर दिया गया था। हालांकि आजकल इसको लेकर एक तथ्य पेश किए जाते हैं कि वास्को डी गामा ने भारत की खोज की। लेकिन सच तो ये है कि वास्को डी गामा ने योरप को पहली बार भारत तक पहुंचने का समुद्री मार्ग बताया। यूरोप अरब के देशों से मसाले, मिर्च आदि खरीदता था लेकिन अरब देश के कारोबारी उसे यह नहीं बताते थे कि यह मसाले वह पैदा किस जगह करते हैं। यूरोपीय इस बात को समझ चुके थे कि अरब कारोबारी उनसे जरूर कुछ छुपा रहे हैं। ये कारोबारी पूर्वी देशों से ज्यादा परिचित नहीं थे। यूरोप वासियों के लिए भारत पहुंचने के तीन रास्ते थे। पहला रूस को पार कर चीन से होते हुए बर्मा के रास्ते जाता, जिसे बेहद ही लंबा और जोखिम भरा माना जाता। दूसरा रास्ता अरब और ईरान को पार करके जाता था और तीसरा रास्ता समुद्र का था। हिन्दुस्तान के समुद्री रास्ते की खोज में निकले क्रिस्टोफर कोलंब  अंटार्टिक महासागर में भ्रमित हो गए और अमेरिका की ओर चले गए। कोलंबस को लगा की यही भारत है। कोलंबस की यात्रा के करीब पांस साल बाद भारत के लिये नए समुद्री मार्ग की खोज में पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा निकल पड़े। उस वक्त भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। वास्कोडिगामा का स्वागत कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन (यह कालीकट के को उपाधि थो) द्वारा किया गया तत्कालीन भारतीय व्यापार पर अधिकार रखने वाले अरब व्यापारियों को जमोरिन का यह व्यवहार पसंद नहीं आया, अत: उनके द्वारा पुर्तगालियों का विरोध किया गया।

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यूरोप को भारत की  समृद्धि का पता चला

वास्को डी गामा 29 अगस्त 1498 को फिर कालीकट से पुर्तगाल के लिए रवाना हो गया। लेकिन वो भारत की समृद्धि देख चुका था।1499 तक यूरोप में भारत की जानकारी लोगों को होने लगी। इस तरह से वास्को डी गामा भारत की जमीन पर कदम रखने वाला पहला पुर्तगाली था। 1510 में पुर्तगाली नौसेना द्वारा तत्कालीन स्थानीय मुगल राजा को पराजित कर पुर्तगालियों ने यहां के कुछ क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित किया गया। यहाँ वे अपना एक आधार बनाना चाहते थे जहाँ से वे मसालों का व्यापार कर सकें। सोलहवीं सदी के मध्य तक पुर्तगालियों ने आज के गोवा क्षेत्र में पूरी तरह अपनी स्थिती सुदृढ कर ली थी। 1615 ईं में ये क्षेत्र ब्रिटिश अधिकार में आ गया। नेपोलियन ने 1809-1815 के बीच पुर्तगाल पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद एंग्लो पुर्तगाली गठबंधन के बाद गोवा अपने आप ही अंग्रेजी अधिकार क्षेत्र में आ गया। 1815 से 1947 तक गोवा में अंग्रेजों का शासन रहा और पूरे हिंदुस्तान की तरह अंग्रेजों ने वहां के भी संसाधनों का जमकर शोषण किया। 

अंग्रेजों की चाल और गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार

देश की आजादी के समय जब अंग्रेजों के साथ बातचीत हो रही थी तो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों से यह मांग रखी कि गोवा को भारत के अधिकार में दे दिया जाए। वहीं पुर्तगाल ने भी गोवा पर अपना दावा ठोक दिया। अंग्रेजों ने भारत की बात नहीं मानी और गोवा पुर्तगाल को हस्तांतरित कर दिया गया। गोवा पर पुर्तगाली अधिकार का तर्क यह दिया गया था कि गोवा पर पुर्तगाल के अधिकार के समय कोई भारत गणराज्य अस्तित्व में नहीं था।

आजादी के बाद भी गोवा 15 सालों तक गुलाम रहा

1947 में भारत की आजादी के बाद भी गोवा में पुर्तगाल का झंडा लहरा रहा था। देश की आजादी के समय जब अंग्रेजों के साथ बातचीत हो रही थी तो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों से यह मांग रखी कि गोवा को भारत के अधिकार में दे दिया जाए। वहीं पुर्तगाल ने भी गोवा पर अपना दावा ठोक दिया। अंग्रेजों ने भारत की बात नहीं मानी और गोवा पुर्तगाल को हस्तांतरित कर दिया गया। 15 अगस्त 1955 को तीन से पांच हजार आम लोगों ने गोवा में घुसने की कोशिश की। लोग निहत्थे थे और पुर्तगाल की पुलिस ने गोली चला दी। 30 लोगों की जान चली गई। तनाव बढ़ने के बाद गोवा पर सेना की चढ़ाई की तैयारी की गई। 1 नवंबर 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। भारतीय सेना ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने के साथ आखिरकार दो दिसंबर को गोवा मुक्ति का अभियान शुरू कर दिया। जमीन से सेना, समुद्र से नौसेना और हवा से वायुसेना गई। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। दिसंबर 1961 को गोवा की तरफ सेना पहली बार बढ़ी। सेना जैसे-जैसे आगे बढ़ती लोग स्वागत करते। कुछ जगह पुर्तगाल की सेना लड़ी। लेकिन हर तरफ से घिरे होने की वजह से पराजय तय थी। वायु सेना ने आठ और नौ दिसंबर को पुर्तगालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की, थल सेना और वायुसेना के हमलों से पुर्तगाली तिलमिला गए। आखिर में 19 दिसंबर 1961 की रात साढ़े आठ बजे भारत में पुर्तगाल के गवर्नर जनरल मैन्यु आंतोनियो सिल्वा ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर पर दस्तखत किए।

-अभिनय आकाश 

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