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उत्तर प्रदेश का तीसरा चरणः फिर सपा के गढ़ में सेंधमारी के प्रयास में भाजपा

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उत्तर प्रदेश का तीसरा चरणः फिर सपा के गढ़ में सेंधमारी के प्रयास में भाजपा

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तीसरे चरण में बीजेपी के लिए जहां अपनी सीटें बचाने की चुनौती है तो सपा और बसपा की साख दांव पर होगी। पिछली बार चुनावी नतीजो के देखते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद ही तीसरे चरण में चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने के लिए मैनपुरी जिले की करहल सीट से उतरे हैं।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के शुरुआती दो चरण का चुनाव प्रचार काफी धमाकेदार रहा। सियासी ऊंट किस करवट बैठा, इसको लेकर दावे-प्रतिदावों का दौर तो जारी है, लेकिन असलियत वोटिंग मशीनों में बंद हो गई है,जो 10 मार्च को खुलेंगी। अब तो तीसरे चरण के लिए गोटें सजाई जा रही हैं। तीसरे चरण में यादव बाहुल्य जिलों और बुंदलेखंड इलाके की 59 सीटों पर 20 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। तीसरे चरण में सबसे बड़ा मुकाबला मैनपुरी के करहल में होगा, जहां से भावी मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल समाजवादी पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रत्याशी हैं। तीसरे चरण में बुंदेलखंड को छोड़कर जिन जिलों में मतदान होना है, वहा सपा का परंपरागत गढ़ और यादव बेल्ट है, जहां से 2017 में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था। बुंदेलखंड में तो विपक्ष खाता भी नहीं खोल सका था। अखिलेश की असल परीक्षा अब तीसरे चरण में होनी है, तीसरे चरण में यह भी तय हो जाएगा कि क्या अखिलेश ने नेताजी मुलायम सिंह यादव जैसी पकड़ अपने गढ़ में बना ली है या अभी उनको और मेहनत करनी पड़ेगी। इसी चरण में एक दलित युवती के साथ बलात्कार के बाद हत्या के चर्चा में आया हाथरस, माफिया विकास दुबे एनकाउंटर के बाद सुर्खियां बटोरने वाला कानपुर और इसके चलते यहां ब्राहमणों की नाराजगी का किसको फायदा होगा और किसको नुकसान इसका भी फैसला हो जाएगा।

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के शुरू के दो चरणों की 113 सीटों पर मतदान खत्म हो चुका है। पहले चरण में जहां पश्चिमी यूपी में जाटलैंड इलाके वाली सीटों पर चुनाव थे तो दूसरे चरण में मुस्लिम बहुल विधान सभा सीटों पर वोटिंग हुई थी। वहीं, अब तीसरे चरण में मध्य उत्तर प्रदेश के यादव बेल्ट और बुंदेलखंड इलाके की 59 सीटों पर सियासी दलों ने अपनी जोर-आजमाइश तेज कर दी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए सत्ता में वापसी लिए यह चरण सबसे अहम है तो बीजेपी के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ऐसा इसलिए भी लग रहा है क्योंकि पहले दो चरणों में सपा-भाजपा के बीच मुकाबला बराबरी का बताया जा रहा है। 

तीसरे चरण में हाथरस, फिरोजाबाद, कासगंज, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, कन्नौज, इटावा, औरैया, कानपुर, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा जिले की 59 सीटे हैं। इसमें ब्रज और यादव बेल्ट के सात तो बुंलेदखंड के पांच जिले शामिल हैं। 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण की जिन 59 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उनमें से 90 फीसदी सीटों पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है। 2017 के विधान सभा चुनाव में इन 59 सीटों में से 49 सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी जबकि नौ सीट पर सपा और महज एक सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी। बसपा खाता भी नहीं खोल सकी थी। सत्ता में रहने के बावजूद भी सपा ने अपने गढ़ में अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया था। मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने 49 सीटें जीतकर एक नया रेकॉर्ड बनाया। पिछले तीन दशक में किसी भी पार्टी के लिए इस चरण में यह सबसे बड़ी जीत थी।

तीसरे चरण में बीजेपी के लिए जहां अपनी सीटें बचाने की चुनौती है तो सपा और बसपा की साख दांव पर होगी। पिछली बार चुनावी नतीजो के देखते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद ही तीसरे चरण में चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने के लिए मैनपुरी जिले की करहल सीट से उतरे हैं। वहीं चचा-भतीजे की सुलह के बाद चचा शिवपाल यादव अपनी परम्परागत इटावा जिले की जसवंतनगर सीट से ताल ठोक रहे हैं। शिवपाल कभी सपा के सबसे बड़े रणनीतिकार हुआ करते थे, लेकिन अब पार्टी में हालात बदल चुके हैं। अखिलेश को अपना नेता मान चुके शिवपाल से समाजवादी पार्टी को कितना फायदा होगा, इसको लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। अखिलेश के सामने अपने गढ़ में खिसके सियासी आधार को दोबारा से हासिल करने की है तो बुंदेलखंड के जिन जिलों की सीटों पर चुनाव हैं, वहां पर पिछली बार बसपा-कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी।

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दरअसल, 2017 में एटा, कन्नौज, इटावा, फरुर्खाबाद, कानपुर देहात जैसे जिलों में भी सपा को करारा झटका लगा था। जबकि, 2012 के चुनाव में इन जिलों में सपा ने क्लीन स्वीप किया था। सपा को तीसरे चरण में तब 37 सीटें मिली थीं और 2017 में महज 9 सीटों से संतोष करना पड़ा था। यहां पर बीजेपी का गैर-यादव ओबीसी कार्ड काफी सफल रहा था। शाक्य और लोध वोटर एकमुश्त बीजेपी के पक्ष में गए थे, लेकिन इस बार सपा ने भी इन वोटों को साधने का खास इंतजाम किया। हाथरस जिले की सीटों का चुनाव भी इसी चरण में हैं, जहां दलित युवती के साथ बलात्कार और हत्या और उसके बाद प्रशासनिक मशीनरी का व्यवहार राष्ट्रीय मुद्दा बनबन गया था। अखिलेश यादव वोटरों के जेहन में इस मसले को जिंदा रखने के लिए हर महीने ‘हाथरस की बेटी स्मृति दिवस’ मना रहे हैं। इत्र नगरी कन्नौज पर छापेमारी को सपा एक बड़ा मुद्दा बनाया था और कन्नौज के बदनाम करने का आरोप अखिलेश बीजेपी पर लगाते रहे हैं। वहीं, बिकरू कांड वाला इलाका में भी वोटिंग इसी चरण में होनी है। विकास दुबे पुलिस एनकाउंटर और उसके एक सहयोगी अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे को जेल भेजा जाना यहां मुद्दा बना हुआ है। विपक्ष इसे ब्राह्मणों के साथ अन्याय बता रही है तो कांग्रेस ने खुशी दुबे की बहन नेहा तिवारी को कल्याणपुर से चुनाव में उतार दिया है।

तीसरे चरण की 59 में से 30 विधानसभा सीटों पर यादव वोट बैंक की बहुलता है। 16 में से 9 जिलों में यादवों की बहुलता है। वर्ष 2017 में सपा के खराब प्रदर्शन का कारण यादव विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण होना था। इस बार माहौल को बदलने की कोशिश की जा रही है। अखिलेश यादव के मैनपुरी के करहल सीट से उम्मीदवार बनने के बाद यादव वोट बैंक के अग्रेसिव होने और गैर यादव वोट के धु्रवीकरण की आशंका बढ़ गई है। तीसरे चरण के चुनाव में भाजपा और सपा एक बार फिर जातीय समीकरणों को साधने का प्रयास कर रही है। इसके लिए उन तमाम मुद्दों को उठाया जा रहा है, जो चुनावी मैदान में अहम हो सकते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने कानपुर में चुनावी सभा की और इसमें एक बार फिर तुष्टीकरण का मामला उठाया। साथ ही, मुस्लिम महिलाओं के वोट पर भी बात की। इसका बड़ा असर विपक्षी रणनीतिकारों पर हो रहा है। वोट को साधने की कोशिश में ऐसे बयान आ रहे हैं, जो वोटों के ध्रुवीकरण में सहायक हो सकते हैं।

– अजय कुमार

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